जबलपुर एक नज़र में........

मध्यप्रदेश में प्राकृतिक सुन्दरता से सम्पन्न बहुत सारे स्थान हैं। जबलपुर मध्यप्रदेश के उन स्थानों में से एक हैं । जबलपूर शहर उसकी प्राकृतिक सुन्दरता के लिए तो मशहूर है ही, लेकिन साथ ही नर्मदा नदी के पात्र में स्थित संगमरमर के पत्थरों के लिए भी यह मशहूर है।
नर्मदा नदी के सान्निध्य में बसा हुआ यह जबलपुर शहर मध्यप्रदेश के महाकोशल क्षेत्र का प्रमुख केंद्र हैं । मध्यप्रदेश के आग्नेय दिशा के भाग को ‘महाकौशल’ कहते हैं और इस भाग में नर्मदा की पूर्वी घाटी और सतपुड़ा पर्वत का पूर्वी हिस्सा समाविष्ट होता है। जबलपुर शहर कईं सरोवरों और हरियाली से सम्पन्न है।
यह शहर प्राचीन समय में जाबालि ऋषि की तपश्चरर्या का स्थान था, ऐसा भी मान्यता है और इसीलिए इस स्थान को ‘जबलपुर’ यह नाम प्राप्त हुआ ।दूसरी राय ऐसी भी है कि ‘जबल’ अर्थात् पर्वत या टीलें और इसी वजह से इस शहर को ‘जबलपुर’ कहते हैं। दूसरे शहरों की तरह इस शहर का नामकरण भी अंग्रेज़ों ने Jubbulpore किया था।
जबलपुर का अस्तित्व सम्राट अशोक के समय से है। यहॉं सम्राट अशोक के समय के कुछ अवशेष प्राप्त हुए हैं। उसके बाद ९वी और १०वी सदी में यह शहर विख्यात त्रिपुरी राज्य की राजधानी के तौर पर जाना जाता था। इसवी ८७५ में इस शहर पर कलचुरी राजाओं ने अपनी सत्ता स्थापित की और जबलपुर को राजधानी का दर्जा प्रदान किया। ११वी और १२वी सदी में यहां हैहय वंश का शासन था। १३वी सदी में गोण्ड राजाओं ने इस शहर जबलपुर को अपनी राजधानी का दर्जा दिया। इन गोण्ड राजाओं में से गढ़ मण्डल के गोण्ड राजा ने १६वी सदी में अपने साम्राज्य को जब अधिक शक्तिशाली बनाया, तब जबलपुर यह गोण्ड साम्राज्य का ही एक हिस्सा था। मुग़लों ने जब गोण्ड साम्राज्य पर आक्रमण करना शुरू किया, तब गोण्ड साम्राज्य की रानी दुर्गावती ने मुग़लों को मुँहतोड़ जवाब तो दिया, मगर इस संग्राम में वे शहीद हो गई ।
वीरांगना रानी दुर्गावती को कुशल जल प्रबंधन के लिए भी जाना जाता था ।उसका उदाहरण हैं जबलपुर का संग्राम सागर तालाब। प्राचीन समय में उनके द्वारा किया जल प्रबंधन इतिहास के पन्नो में अनूठा रहा हैं । इसलिए जबलपुर को 52 ताल तलैयों के लिए जाना जाता था और सारे ताल –तलैया एक दुसरे से जुड़े थे जिससे न तो किसी ताल में पानी की कमी हो और ना ही पानी की बर्बादी हो ।

इसवी सन १७८१ में गोण्ड राजाओं की सत्ता समाप्त हुई। मराठों ने उन्हें परास्त कर दिया। इसवी १७९८ में पेशवाओं ने नागपुर के शासक भोसलेजी को नर्मदा की घाटी का कारोबार सौंप दिया। जबलपुर पर इसवी १८१८ तक मराठों का शासन था। इसवी १८१८ में अंग्रेज़ों ने मराठों को परास्त करके जबलपुर पर अपना कब्ज़ा जमाया। सेना के बल पर अपने साम्राज्य का विस्तार करनेवाले अंग्रेज़ों ने जबलपुर में अपनी सेना की छावनी का निर्माण किया और इस शहर को ‘कमिशन हेड क्वार्टर’ का दर्जा दिया।
अंग्रेज़ों ने अपने कारोबार की सहुलियत के लिये विभिन्न प्रान्तों का निर्माण किया। सागर और नर्मदा इस प्रान्त की राजधानी जबलपुर शहर बना। आगे चलकर सागर-नर्मदा विभाग को नये रूप से निर्मित मध्य प्रान्त में समाविष्ट किया गया और इसका नामकरण मध्य प्रान्त और बेरार (सीपी एण्ड बेरार) इस तरह से किया गया।
भारत की आज़ादी के बाद मध्य प्रान्त और बेरार इस विभाग को भारत के राज्य का दर्जा दिया गया। इस तरह से विभिन्न मोड से गुजरते हुए आख़िर इसवी १९५६ में मध्यप्रदेश राज्य बनने के बाद जबलपुर का समावेश मध्यप्रदेश में किया गया।
प्राकृतिक सुन्दरता के वरदान के साथ-साथ जबलपुर में खनिज सम्पत्ति भी विपुल मात्रा में है। अश्मीभूत डायनॉसोर के अवशेष प्राप्त होने के बाद यह स्थान भूगर्भशास्त्रज्ञ, पुरातत्वशास्त्रज्ञ एवं अश्मीभूत जीव-अवशेषों का अध्ययन करनेवालों की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ है।
भौगोलिक दृष्टि से तो यह शहर महत्त्वपूर्ण है ही, साथ ही इसका अपना ऐतिहासिक महत्त्व भी है। भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रसर नेता महात्मा गाँधी, लोकमान्य तिलक और नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के कदम इस शहर की भूमि पर पड़े हैं। लोकमान्य तिलक यहॉं तीन बार आयें, वहीं महात्मा गांधी यहॉं चार बार आयें । इसवी १९३९ में इस शहर में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। इस शहर को त्रिपुरी भी कहते हैं, अतएव इसवी १९३९ के कांग्रेस अधिवेशन को त्रिपुरी कांग्रेस अधिवेशन भी कहा जाता है। सुभाषचन्द्र बोस इस अधिवेशन के अध्यक्ष थें।
यह शहर प्राकृतिक सुन्दरता के साथ ही भेडाघाट के मार्बल रॉक्स के लिए प्रसिद्ध हैं । जबलपुर शहर से लगभग २०-२५ कि.मी. की दूरी पर स्थित भेड़ाघाट में ये मार्बल रॉक्स् पाये जाते हैं। मार्बल रॉक्स् अर्थात् संगेमरमर के पत्थर। इस पत्थर की चट्टानें किसी चहारदिवारी की तरह नर्मदा के तट पर स्थित हैं। इस संगमरमर की सुन्दरता दिन के उजाले में जितनी मोहक है, उतनी ही रात में चन्द्र के प्रकाश में भी मन को लुभाती है। प्रकृति के इस चमत्कार को हम नर्मदा में नौका के द्वारा भेड़ाघाट जाकर बड़ी आसानी से देख सकते हैं। संगमरमर पर पड़नेवाली सूर्य एवं चन्द्र की किरणें और हमेशा उनका साथ देनेवाला नर्मदा का बहता नीला जल, इस दृश्य को देखकर दर्शक मन्त्रमुग्ध हो जाते हैं।

इन मार्बल रॉक्स् के पास ही एक प्रपात है, जो ‘धुँआधार इस नाम से जाना जाता है। इस प्रपात के तेज़ी के साथ नीचे आनेवाले पानी के तुषार कोहरे जैसे वातावरण का निर्माण करते हैं।

जबलपुर में हम कुदरत का एक और करिश्मा देख सकते हैं – ‘बैलेंसिंग रॉक्स्’। यहॉं दो पत्थर इस प्रकार से स्थित हैं कि उनका बहुत ही कम हिस्सा आपस में जुड़ा हुआ है; मगर इस स्थिति में भी वे एक दूसरे पर इस तरह से विद्यमान हैं कि जैसे दोनों ने एक-दूसरे को बैलेंस कर रहे हैं।

मदनशाह नामक गोण्ड शासक ने १२वी सदी में बनाया हुआ मदनमहल किला नाम का राजमहल जबलपुर में है।

जबलपुर की एक और विशेषता यह है कि हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री के कईं अभिनेता एवं अभिनेत्रियॉं जबलपुर से जुड़े हुए थें।

इन सब बातों के साथ-साथ शिक्षा के क्षेत्र में भी जबलपुर का अपना महत्त्व है।
जबलपुर इंजिनियरिंग कॉलेज की स्थापना इसवी १९४७ में की गयी। यह भारत में स्थापित किया गया दूसरा इंजिनियरिंग कॉलेज है। इस कॉलेज का मूल नाम रॉबर्टसन कॉलेज था, जो आगे चलकर गव्हर्नमेंट इंजिनियरिंग कॉलेज बन गया और आज वह जबलपुर इंजिनियरिंग कॉलेज के नाम से जाना जाता है।

इस कॉलेज की विशेषता है, इस कॉलेज की इलेक्ट्रिकल इंजिनियरिंग डिपार्टमेंट की हाय व्होल्टेज लॅबोरेटरी। भारत में इस तरह की सुविधा मात्र ५ स्थानों पर है और उनमें से एक है, यह कॉलेज।

इसवी १८३६ में गव्हर्नमेंट मॉडेल सायन्स कॉलेज की स्थापना की गयी। जबलपुर में शिक्षा की नींव रखनेवालीं संस्थाओं में से यह एक संस्था है।

देश की सुरक्षा में इस शहर का महत्त्वपूर्ण योगदान है। इसवी १९०४ में यहॉं गन कैरिज फॅक्टरी की स्थापना की गयी। इस प्रकार की युद्ध सामग्री बनाने वाली रक्षा क्षेत्र की पांच बड़ी इकाइयाँ हैं जिनमे सीओडी, आयुध निर्माणी खमरिया, वाहन निर्माणी एवं ग्रे आयरन फैक्ट्री आदि हैं । यहाँ रक्षा उत्पादन की कई बड़ी इकाइयों के साथ ही थल सेना के ट्रेनिंग सेंटर, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार एवं ओडिशा का मुख्यालय और अभिलेख कार्यालय स्थित हैं।

वर्तमान में जबलपुर में इनफार्मेशन क्षेत्र की आइआइटी अर्थात इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी फॉर डिजाईन एंड मैन्युफैक्चरिंग, शासकीय इंजीनियरिंग कॉलेज के आलावा लगभग 20 से अधिक निजी इंजीनियरिंग कॉलेज स्थापित हैं, इसके अलावा विभिन्न डिप्लोमा और डिग्री के विभिन्न संस्थान भी है |

जबलपुर शहर में चार विश्वविद्यालय हैं जिनमे रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, वेटनरी विश्विद्यालय, कृषि विश्विद्यालय एवं मेडिकल यूनिवर्सिटी आदि बड़े शिक्षा संस्थान स्थापित हैं ।

जबलपुर दूरसंचार के क्षेत्र में अग्रणी हैं । यहाँ बीएसएनएल की 2 बड़ी टेलिकॉम फैक्ट्री के साथ ही टेलिकॉम सेक्टर का एशिया का सबसे बड़ा प्रशिक्षण केंद्र हैं के साथ ही बीएसएनएल का रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेंटर भी हैं ।
जबलपुर में आईटी पार्क और इलेक्ट्रॉनिक मैन्युफैक्चरिंग क्लस्टर की स्थापना का कार्य भी प्रगति पर हैं और शीघ्र ही इसे प्रारम्भ करने की दिशा में कार्य चल रहा हैं ।

जबलपुर मे रेल, रोड एवं हवाई सेवा तीनों उपलब्ध हैं और रेल के जरिये जबलपुर देश के सभी प्रमुख शहरों से सीधे जुडा हुआ हैं, जबलपुर से तीन राष्ट्रीय राजमार्ग होकर गुजरते हैं जिनमे एनएच 7,12,12A हैं । जबलपुर से मुंबई, दिल्ली, भोपाल, हैदराबाद की सीधी उड़ाने उपलब्ध हैं ।

केंद्र सरकार के शहरी विकास मंत्रालय के द्वारा टॉप 20 स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित करने वाली पहली सूची में जबलपुर को भी चिन्हित किया गया हैं ।
जाबालि ऋषि की इस तपोभूमि जबलपुर को आचार्य विनोवाभावे ने ‘संस्कारधानी’ का नाम दिया था।